Friday, May 17, 2019

भरोसे का वास्तविक अर्थ क्या है ? (What is the real meaning of trust ?)

भरोसा, विश्वास ये ऐसे शब्द हैं, जिन्हें हम अक्सर सुनते रहते हैं और साथ ही सुनते रहते हैं भरोसे और विश्वास से जुडी अनगिनत बातें...
पर क्या हम सभी इन शब्दों के मतलब समझते है, बिलकुल समझते है, लेकिन फिर भी इन शब्दों के को लेकर हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते ही रहते हैं तो चलिए आज तलाशते हैं मन में इन शब्दों को लेकर उठते सवालों के जवाब !!!

तो पहला सवाल है हमारा कि ये भरोसा है क्या ?

इसका जवाब है भरोसा या फिर विश्वास महज एक भावना है जो हमें आश्वस्ति देती है जैसे एक पिता जब अपने बेटे के बारे में कहता है कि मेरा बेटा मेरे से बिना पूछे कुछ कर ही नहीं सकता और अगर लोग इस पिता से उसके बेटे के बारे में कुछ कहना भी चाहे तो वो सुनना नही चाहेगा |
वजह – वजह सिर्फ इतनी ही है की वो अपने बेटे को लेकर आश्वस्त है और यही भाव भरोसे से जुडी दूसरी तमाम बातों में आसानी से दिखाई देगी तो ये तो हुआ की भरोसा है क्या ….



अब प्रश्न ये आता है कि ये भरोसे की भावना को विकसित कैसे किया जाये ?

तो जितना कठिन ये प्रश्न है उतना ही सरल इसका जवाब है, ये भावना आपको खुद ही विकसित करनी होती है जैसे मान लीजिये कि अगर आपके सामने एक विशाल पर्वत है और आपका प्रेम इस पर्वत के दूसरी तरफ आपसे मिलने के लिए बेकरार है तब आपके सामने दो ही रास्ते हैं या तो आप अपने उस प्रेम को भूल जायें, छोड़ दे उसे, या फिर उस पर्वत को लांघ जाय और जाकर अपने प्रेम को पा ले | ये पर्वत क्या है.. ये मेरे रास्ते में आएगा … मै इस पर्वत को लाघं जाऊँगा….. मुझे मेरे प्रेम से कोई भी पर्वत दूर नहीं कर सकता, बस यही भाव, यही सोच ही विश्वास है, भरोसा है, कुछ कर जाने की चाह है और ये आता है आपकी सोच से यानी आप कितना सकारात्मक सोचते है, कितना पॉजिटिव है अपने जीवन को लेकर और अपने आने वाले कल को लेकर |




तो मूल बात यही है कि यदि सोच सकारात्मक रखें तो खुद पर भरोसा अपने आप ही उत्पन्न हो जाएगा |



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