Wednesday, May 22, 2019

क्या हमें सफलता के लिए किसी की नकल करनी चाहिए ? (Should we duplicate someone for success ?)


    हमे अमुक व्यक्ति की तरह बनना है या फिर उस अमुक व्यक्ति ने जैसा किया वैसा करना है या उसकी तरह ही दिखना है इत्यादी इत्यादि ... | ये बातें लगभग हम सभी लोगों ने सुनी है या फिर लोगों को ऐसा कहते देखा है |

    ऐसी बातें जब हम सुनते हैं तो हमारे मन मस्तिष्क में ये विचार आता है कि क्या दुसरे जैसा बनने और करने में ही सच्ची सफलता है  ? क्या यही हमारे जीवन का मकसद है ? और अगर ऐसा नहीं है तो फिर लोग दूसरों के जैसे होने या बनने की बात क्यों करते है |




तो चलिए आज हम आपके साथ इसी विषय पर चर्चा करते है |


    एक व्यक्ति जो अपने जीवन में कुछ हासिल करना चाहता है, किसी मजिल तक पहुचना चाहता है तो उसे एक प्रेरणा की जरुरत होती है, उसे मार्ग दर्शन की जरुरत होती है और इसके लिए वह अपने से ज्यादा सफल और योग्य व्यक्तियों की तरफ देखता है ताकि वह उनसे कुछ सीख सके, अपनी मजिल की ओर जाने वाले रास्ते के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर सके |



   अब यहाँ तो ठीक है कि किसी योग्य व्यक्ति से कुछ सीखने और प्रेरित होने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन समस्या तब शुरू हो जाती है जब व्यक्ति प्रेरित होने के स्थान पर नक़ल करने लगता है और हुबहू दुसरे के जैसा बनने में अपनी पूरी उर्जा लगा देता है | व्यक्ति यह भूल जाता है कि उस सफल व्यक्ति की जिसकी वो नक़ल कर रहा है, उसकी प्रतिभा , उसके गुण, उसके कार्य करने का तरीका, सबकुछ अगल हो सकता है | व्यक्ति यहाँ पर सिर्फ परिणाम देखता है और बाकी अन्य बातों पर उसका ध्यान ही नहीं जाता, और यही से समस्या भी शुरू होती है | व्यक्ति अपने अन्दर की प्रतिभा को नकारने लग जाता है और समय बीतने के साथ तमाम प्रयासों के बावजूद जब आशातीत सफलता नहीं मिलती है तो व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो जाता है उसे लगने लगता है कि उसमे वो बात ही नहीं है वो क्षमता ही नहीं है कि वह अपने जीवन में कुछ अर्जित कर सके और यही से वो व्यक्ति, जो अपने जीवन में बहुत कुछ कर सकता था वो पिछड़ने लगता है और एक समय आता है जब वो निराशा का शिकार हो जाता है और नकारात्मकता विचार उसके व्यक्तित्व पर हावी होने लगती है |


    अब अगर इसके स्थान पर वो ही व्यक्ति उस व्यक्ति से प्रेरित भले ही जरुर होता लेकिन साथ ही अपनी प्रतिभा के हिसाब से सफलता की अपनी रणनीति बनाता, नक़ल की जगह अपनी अकल लगाता तो उसे जो भी हासिल होता वो उसकी अपनी सूझ बुझ और समझ का परिणाम होता | इसके अलावा चूंकि ये सफलता उसे अपनी अकल लगाने की वजह से मिला होता है तो इसकी वजह से उसे जो ख़ुशी मिलती वो अदभुत होती |


   अंत में यही कहेंगे कि दूसरों से प्रेरणा अवश्य ग्रहण करें परन्तु दुसरे की नक़ल ना करें | अपनी मंजिल का  रास्ता अपनी समझ और अपनी प्रतिभा से स्वयं तय करें | यकीन करें आपकी मजिल तक का ये सफ़र न सिर्फ आपके लिए बल्कि दूसरों के लिए भी सीख देने वाला होगा और आप दूसरों के लिए एक मिसाल बन जायेंगे |

Friday, May 17, 2019

मन को नियंत्रण कैसे और क्यों रखना चाहिए ? (How and why should I keep control on Mind ?)

हम आज आपको एक युवक की कहानी सुनाते हैं | ये युवक दुसरे अन्य  युवक जैसा ही था उसके भी सपने थे, जीवन में कुछ पाने कुछ करने की चाह भी थी और  योग्यता भी थी |




लेकिन उसके सपने सिर्फ सपने ही बन कर रह गये | उसे जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और देखते ही देखते समय बीतता गया और वो युवक एक दिन उम्र के उस पड़ाव में  पहुच गया, जहाँ पहुंच कर व्यक्ति कुछ करने के लिए के उतना उत्सुक नहीं रह जाता है जितना वो युवावस्था में  होता है | 


अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर उस युवक के साथ ऐसा क्या हुआ था जो वो अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाया ? 



तो इसकी वजह थी उस युवक का मन...

अब आप को ये बड़ा ही अजीब लग रहा होगा की मन की वजह से कोई कैसे अपने जीवन में पिछड़ सकता है |तो चलिए आपको विस्तार से बताते है, दरअसल युवक का अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं था जब उसे पढाई करनी होती थी तो उस वक़्त उसके मन से ये आवाज आती थी कि अभी दोस्तों के साथ थोड़े गप्पें मारे और वो अपने मन की सुन लेता था, नतीजा यह निकला कि उसकी पढाई छुट जाती थी और परिणाम अच्छे नहीं आते थे |




इसी प्रकार से उसका मन हमेशा मौज मस्ती करने का करता रहा और वह मन के अनुसार चलता रहा जबकि उस समय उसे सिर्फ अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए था |
ऐसे ही वह हर काम अपने मन के अनुसार करता रहा और उसका मन था कि हमेशा उल्टा चलता था | वैसे इसमें मन की भी गलती नहीं है मन की तो फितरत ही है कि वो इंसान को अपने अनुसार चलाना चाहता है | जैसे अगर आप कोई काम कर रहे होते हैं तो उस वक़्त आपका मन आपसे ये कहेगा काम छोडो आराम करो, लेकिन इंसान अपने बुद्धि और विवेक का प्रयोग करके मन को अपने नियंत्रण में रख सकता है और यदि वह मन की सुने जरुर परन्तु करे वही है जो उसे उचित लगता हो ना की मन के अनुसार चलने लगे और यही काम वो युवक नहीं कर पाया जिसका फल उसे भुगतना पड़ा | और ये कहानी किसी एक युवक की नही है, ये कहानी आज के दौर में हर उस युवक की है जो करना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन वो बुद्धि से ज्यादा मन की मानते हैं और करते है | मन में उठी हर बात को बुद्धि के तराजू पर रख कर नहीं तौलते हैं |




तो आज हमे इस युवक की कहानी से ये शिक्षा मिलती है कि मन को नियंत्रण कैसे और क्यों रखना चाहिए | मन की बात को सुने जरुर, परन्तु मन की करने से पहले अपने बुद्धि और विवेक का प्रयोग करें और जो बुद्धि कहे उसे ही करने की कोशिश करें तभी आप अपने जीवन में अपनी आशा और उम्मीद के अनुरूप सफलता प्राप्त कर सकेंगे | 

भरोसे का वास्तविक अर्थ क्या है ? (What is the real meaning of trust ?)

भरोसा, विश्वास ये ऐसे शब्द हैं, जिन्हें हम अक्सर सुनते रहते हैं और साथ ही सुनते रहते हैं भरोसे और विश्वास से जुडी अनगिनत बातें...
पर क्या हम सभी इन शब्दों के मतलब समझते है, बिलकुल समझते है, लेकिन फिर भी इन शब्दों के को लेकर हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते ही रहते हैं तो चलिए आज तलाशते हैं मन में इन शब्दों को लेकर उठते सवालों के जवाब !!!

तो पहला सवाल है हमारा कि ये भरोसा है क्या ?

इसका जवाब है भरोसा या फिर विश्वास महज एक भावना है जो हमें आश्वस्ति देती है जैसे एक पिता जब अपने बेटे के बारे में कहता है कि मेरा बेटा मेरे से बिना पूछे कुछ कर ही नहीं सकता और अगर लोग इस पिता से उसके बेटे के बारे में कुछ कहना भी चाहे तो वो सुनना नही चाहेगा |
वजह – वजह सिर्फ इतनी ही है की वो अपने बेटे को लेकर आश्वस्त है और यही भाव भरोसे से जुडी दूसरी तमाम बातों में आसानी से दिखाई देगी तो ये तो हुआ की भरोसा है क्या ….



अब प्रश्न ये आता है कि ये भरोसे की भावना को विकसित कैसे किया जाये ?

तो जितना कठिन ये प्रश्न है उतना ही सरल इसका जवाब है, ये भावना आपको खुद ही विकसित करनी होती है जैसे मान लीजिये कि अगर आपके सामने एक विशाल पर्वत है और आपका प्रेम इस पर्वत के दूसरी तरफ आपसे मिलने के लिए बेकरार है तब आपके सामने दो ही रास्ते हैं या तो आप अपने उस प्रेम को भूल जायें, छोड़ दे उसे, या फिर उस पर्वत को लांघ जाय और जाकर अपने प्रेम को पा ले | ये पर्वत क्या है.. ये मेरे रास्ते में आएगा … मै इस पर्वत को लाघं जाऊँगा….. मुझे मेरे प्रेम से कोई भी पर्वत दूर नहीं कर सकता, बस यही भाव, यही सोच ही विश्वास है, भरोसा है, कुछ कर जाने की चाह है और ये आता है आपकी सोच से यानी आप कितना सकारात्मक सोचते है, कितना पॉजिटिव है अपने जीवन को लेकर और अपने आने वाले कल को लेकर |




तो मूल बात यही है कि यदि सोच सकारात्मक रखें तो खुद पर भरोसा अपने आप ही उत्पन्न हो जाएगा |



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